Thursday, November 5, 2020

Brihaspativar Vrat Katha*बृहस्पतिवार व्रत कथा*Thursday Vrat Vidhi*बृहस्पति

बृहस्पतिवार व्रत कथा*Thursday Vrat Vidhi


 



व्रत कथा

यह उपवास सप्ताह के दिवस बृहस्पतिवार  को रखा जाता है। किसी भी माह के शुक्ल पक्ष में अनुराधा नक्षत्र और गुरुवार के योग के दिन इस व्रत की शुरुआत करना चाहिए। नियमित सात व्रत करने से गुरु ग्रह से उत्पन्न होने वाला अनिष्ट नष्ट होता है।

 

कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्ध होकर मनोकामना पूर्ति के लिए बृहस्पति देव से प्रार्थना करनी चाहिए। पीले रंग के चंदन, अन्न, वस्त्र और फूलों का इस व्रत में विशेष महत्व होता है।

सूर्योदय से पहले उठकर स्नान से निवृत्त होकर पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। शुद्ध जल छिड़ककर पूरा घर पवित्र करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर बृहस्पतिवार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

 

तत्पश्चात पीत वर्ण के गंध-पुष्प और अक्षत से विधिविधान से पूजन करें।

 

इसके बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करें:-

 

* धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥ *

 

तत्पश्चात आरती कर व्रतकथा सुनें।

 

इस दिन एक समय ही भोजन किया जाता है।

 

बृहस्पतिवार के व्रत में कंदलीफल (केले) के वृक्ष की पूजा की जाती है।

 

माना जाता है इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है। खासकर इस व्रत को कुंवारी लड़कियों के लिए काफी फलदायी बताया गया है इससे विवाह में आ रही रुकावट दूर हो जाती है।

 

गुरुवार यानी बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु और देव गुरु बृहस्पति की पूजा का विधान है।

 

इनके लिए बृहस्पतिवार व्रत रखना लाभकारी (Thursday Fast Benefits In Hindi) :

– जिनकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो

– विवाह में देरी और रुकावट आ रही हो, वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं चल रहा हो

– संतान संबंधी समस्या या संतान सुख से वंचित हो

– जिन्हें पेट या मोटापे से संबंधित समस्या हो

– जिन्हें अपना आध्यात्मिक पक्ष मजबूत करना हो और बुद्धि और शक्ति की कामना हो


श्री बृहस्पति देव की आरती

जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥

 


Vishnu Ji Ki Aarti: गुरुवार को इस विष्णु आरती से करें श्री हरि की पूजा !

विष्णु जी के बारे में कहा जाता है कि वे जल्दी प्रसन्न नहीं होते। लेकिन यदि गरुवार को सच्ची श्रद्धा के साथ श्री हरि की पूजा की जाए तो वे प्रसन्न हो जाते हैं।

हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। गुरुवार भगवान विष्णु का दिन माना गया है।

माना जाता है कि विष्णु जी प्रसन्न होने पर अपने भक्त के जीवन के सभी कष्टों का हर लेते हैं। व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। विष्णु जी की पूजा में आरती का विशेष महत्व है। माना जाता है कि गरुवार को विष्णु जी की आरती करने से उनकी विशेष कृपा बरसती है। इसे ध्यान में रखते हुए, हम आपके लिए विष्णु आरती लेकर आए हैं।

 


ॐ ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट

क्षण में दूर करे, ओम जय…।

 

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का

स्वामी दुख बिनसे मन का

सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का, ओम जय…।

 

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी

स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी

तुम बिन और न दूजा, आश करूँ किसकी, ओम जय…।

 

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी

स्वामी तुम अंतरयामी

परम ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी, ओम जय…।

 

तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता

स्वामी तुम पालन करता

दीन दयालु कृपालु, कृपा करो भरता, ओम जय…।

 

तुम हो एक अगोचर सबके प्राण पति

स्वामी सबके प्राण पति

किस विधि मिलूँ दयामी, तुमको मैं कुमति, ओम जय…।

 

दीन बंधु दुख हरता, तुम रक्षक मेरे

स्वामी तुम रक्षक मेरे

करुणा हस्त बढ़ाओ, शरण पड़ूं मैं तेरे, ओम जय…।

 

विषय विकार मिटावो पाप हरो देवा

स्वामी पाप हरो देवा

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा, ओम जय…।

 

हिंदू धर्म में फूलों का विशेष महत्व है। फूलों को इस सृष्टि की पवित्र चीजों में से एक माना गया है। हिंदू धर्म में होने वाली देवी-देवता की पूजा में फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। फूलों के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। कहते हैं कि पूजा में फूल चढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किस देवता को कौन सा फूल चढ़ाया जा रहा है।


फूल


विष्णु: कहते हैं कि विष्णु जी को कमल, मौलसिरी, जूही, कुंदम, केवड़ा, चमेली, मालती और चंपा के फूल बहुत पसंद हैं। इसलिए श्री हरि को ये फूल चढ़ाए जा सकते हैं।

 

श्रीकृष्ण: कृष्ण जी को कुमुद, करवरी, मालती, नंदिक और पलाश के फूल काफी पसंद हैं। आप कृष्ण जी की आराधना करते समय ये फूल चढ़ा सकते हैं।


 

बृहस्पति

 https://en.wikipedia.org/wiki/B%E1%B9%9Bhaspati

 https://en.wikipedia.org/wiki/Jupiter

 https://en.wikipedia.org/wiki/Vidura

In ancient Hindu literature Brihaspati is a Vedic era sage who counsels the gods, while in some medieval texts the word refers to the largest planet of the solar system, Jupiter.

He taught Bhishma the duties of a king which he later taught it to Vidura.

 

Bṛhaspati appears in the Rigveda (pre-1000 BCE), such as in the dedications to him in the hymn 50 of Book 4; he is described as a sage born from the first great light, the one who drove away darkness, is bright and pure, and carries a special bow whose string is Rta or "cosmic order" (basis of dharma). His knowledge and character is revered, and he is considered Guru (teacher) by all the Devas.

 

 In the Vedic literature and other ancient texts, sage Brihaspati is also called by other names such as Bramanaspati, Purohita, Angirasa (son of Angiras) and Vyasa; he is sometimes identified with god Agni (fire).

 His wives are Shubatreyi and Tara (or goddess who personifies the stars in the sky).

 

The reverence for sage Brihaspati endured through the medieval period, and one of the many Dharmasastras was named after him.

 

While the manuscripts of Brihaspati Smriti (Bṛhaspatismṛti) have not survived into the modern era, its verses were cited in other Indian texts. Scholars have made an effort to extract these cited verses, thus creating a modern reconstruction of Bṛhaspatismriti.

 Jolly and Aiyangar have gathered some 2,400 verses of the lost Bṛhaspatismṛti text in this manner.

 

Brihaspati Smriti was likely a larger and more comprehensive text than Manusmriti, and the available evidence suggests that the discussion of the judicial process and jurisprudence in Brihaspati Smriti was often cited.

 


https://en.wikipedia.org/wiki/Barhaspatya_sutras

 

In medieval mythologies particularly those associated with Hindu astrology, Brihaspati has a second meaning and refers to Jupiter. It became the root of the word 'Brihaspativara' or Thursday in the Hindu calendar. Brihaspati as Jupiter is part of the Navagraha in Hindu zodiac system, considered auspicious and benevolent.

The icon of Brihaspati makes his body golden, with his legs striped blue and his head covered with a halo of moon and stars. He holds different items depending on the region. in parts of South Asia he holds a container containing soma, sometimes with a tamed tiger. Elsewhere, his icon carries a stick, a lotus and beads

Brihaspati was married to Tara. In medieval mythologies, Tara was abducted by Chandra. Tara bore a son, Budha (planet Mercury).

 

Mantra : Om Brihaspataye Namaha

ॐ बृं बृहस्पतये नमः' का 108 बार जप अवश्य करे।

 


देवगुरु बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन ॐ भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का एक माला जाप करें। साथ ही भगवान विष्णु को संभव हो तो पीले रंग के फल का भोग लगाकर प्रसाद के रूप में बांटें।

 

यदि इन दिनों आपके मन में चीजों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रहती हो और तमाम प्रयासों के बावजूद कार्यों में सफलता न मिल रही हो और तमाम तरह के आर्थिक कष्टों ने घेर रखा हो तो भगवान विष्णु को प्रसन्न करने करने के लिए नियमित रूप से विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। भक्ति-भाव से यह उपाय करने पर निश्चित रूप से बाधाएं दूर होंगी और कार्यों में सफलता मिलेगी।


ज्‍योतिष के अनुसार देव गुरू बृहस्‍पति का स्‍थान सर्वोच्‍च है, इसीलिए उनका ग्रहों में उनका प्रथम स्‍थान है। उनके प्रिय फूल है जास्‍मीन उनकी पूजा में इस पुष्‍प के प्रयोग से वे अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं। 

पीला रंग

इस द‍िन पीले रंग को खाने और पहनने की चीजों में शाम‍िल कि‍या जाए तो कई लाभ होते हैं। इस द‍िन पीले रंग की मिठाई जरूर खाएं। इससे स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा होगा। आर्थि‍क स्‍थि‍त‍ि अच्‍छी होगी और सफलता मि‍लेगी। बुद्ध‍ि भी तेजी से व‍िकसि‍त होती है। समाज में पद प्रत‍िष्‍ठा बढ़ती है। ज‍िन युवक युवत‍ियों की शादी में रुकावट आ रही है। उन्‍हें पीले रंग का आभूषण व कपड़ा पहनने से लाभ होगा।

चने की दाल

बृहस्‍पति की पूजा में चने की दाल का अत्‍यंत महत्‍व होता है। इस दिन चने की दाल और चावल को मिला कर चढ़ाने और उसकी खिचड़ी का भोग लगाने और प्रसाद खाने से पुण्‍य मिलेगा।

पीला सफायर

बहुमूल्‍य हीरे, जवाहारातों में पीला सफायर बृहस्‍पति का प्रिय है। इस दिन इसे धारण करने सुख समृद्धि मेंवृद्धि होती है।

प्रिय धातु

बृहस्‍पति वार को गुरू की प्रसन्‍नता के लिए सोने, तांबे और कांसे की धातुओं का दान और खरीद को शुभ माना जाता है।

Brihaspati Yantra

 



Jupiter Yantra


 




बृहस्पति स्तोत्र

 

पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी,

चतुर्भुजो देवगुरु: प्रशान्त:

दधाति दण्डं कमण्डलुं ,

तथाक्षसूत्रं वरदोsस्तु मह्यम ।।1।।

नम: सुरेन्द्रवन्द्याय देवाचार्याय ते नम:

नमस्त्वनन्तसामर्थ्यं देवासिद्धान्तपारग ।।2।।

सदानन्द नमस्तेस्तु नम: पीडाहराय

नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे ।।3।।

नमोsद्वितीयरूपाय लम्बकूर्चाय ते नम:

नम: प्रह्रष्टनेत्राय विप्राणां पतये नम: ।।4।।

नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक:

नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहेतवे ।।5।।

विषमस्थस्तथा नृणां सर्वकष्टप्रणाशनम

प्रत्यहं तु पठेद्यो वै तस्य कामफलप्रदम ।।6।।

(इति मन्त्रमहार्णवे बृहस्पतिस्तोत्रम)

 

श्री बृहस्पति गायत्री मंत्र


Brihaspati is also known as Deva-guru (guru of the gods). Jupiter is a good indicator of fortune, wealth, fame, luck, devotion, wisdom, compassion, spirituality, religion and morality among other things.

 

Jupiter rules stomach and liver. Jupiter or Brihaspathi rules over the sidereal signs of Sagittarius and Pisces. He is the teacher of Gods and knows the Vedas and is an expert in all forms of knowledge.

 

Jupiter is a benefic planet and considered to be the most auspicious, helpful and generous among all Planets. He is the teacher of Gods and knows the Vedas and is an expert in all forms of knowledge

In Vedic astrology, the planet Jupiter is known as Guru, Brihaspati and Devagura. As a God Brihaspathi is a handsome youth with a big-bellied body and a broad chest. Brihaspati is a Brahman by birth and son of Sage Angirasa (and grandson of Brahma) and Surupa.

Brihaspathi is four armed and wears yellow cloths and is very fond of sweets. He sits on a lotus and his chariot is pulled by eight yellow horses.

 


Brihaspati Gayatri Mantra

ॐ अंगि-रसाय विदमहे दण्डायुधाय धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात् ॥

Om Angirsaay Vidhmhe Dandaayudhay Dheemahi Tanno Jeev: Prachodayat !

 

Another Versions of Brihaspati Gayatri Mantra

  वृषभध्वजाय विद्महे  करुनीहस्ताय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात  !

Om Vrishabadhwajaaya Vidmahae  Kruni Hastaaya Dheemahi Tanno Guru: Prachodayaat

 

  गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात  !

Om Gurudevaay Vidhmhe Parbrahmaay Dheemahi Tanno Guru Prachodyat

 

Brihaspati Beej Mantra

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरूवे नमः ॥

Om Graam Greem Graum Sah: Gurve Namah

 


श्री बृहस्पति कवचम् ( श्री गुरु कवचम् )

 

अस्य श्रीबृहस्पति कवचमहा मन्त्रस्य, ईश्वर ऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, बृहस्पतिर्देवता,  गं बीजं, श्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्,

बृहस्पति प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥

 

ध्यानम्

 

अभीष्टफलदं वन्दे सर्वज्ञं सुरपूजितम् ।

अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥

 

अथ श्री बृहस्पति कवचम्

 

बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।

कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मेभीष्टदायकः ॥ 1 ॥

 

जिह्वां पातु सुराचार्यः नासं मे वेदपारगः ।

मुखं मे पातु सर्वज्ञः कण्ठं मे देवतागुरुः ॥ 2 ॥

 

भुजा वङ्गीरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।

स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥ 3 ॥

 

नाभिं देवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।

कटिं पातु जगद्वन्द्यः ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥ 4 ॥

 

जानुजङ्घे सुराचार्यः पादौ विश्वात्मकः सदा ।

अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥ 5 ॥

 

फलश्रुतिः

 

इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।

सर्वान् कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥

॥ इति श्री बृहस्पति कवचम् संपूर्णम ॥

 


 







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