हे
गोविन्द हे गोपाल अब तो जीवन हारे ।
अब
तो जीवन हारे प्रभु शरण है तिहारे... हे गोविंद ॥
नीर
पीवण हेतु गयो सिन्धू के किनारे
सिन्धू
के बीच बसत ग्राह चरण ले पधारे
हे
गोविन्द हे गोपाल...
चार
प्रहर युद्ध भयो ले गयो मझधारे
नाक
कान डूबण लागे कृष्ण को पुकारे
हे
गोविन्द हे गोपाल...
द्वारिका
में शब्द गयो शोर भयो भारी
शंख
चक्र गदा पदम गरुङ ले सिद्धाये
हे
गोविन्द हे गोपाल...
सूर
कहे श्याम सुनो शरण हैं तिहारे
अबकी
बेर पार करो नन्द के दुलारे
हे
गोविन्द हे गोपाल...
॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
स्वर-गिरधर महाराज